कोई राम को मानता है,
कोई मुहम्मद को सुनता है,
एक मरियादा मे रहना सिखाता है
एक सजदे मे झुकना सिखाता है|
ना क़ुरान मे कत्ल को मंज़ूरी मिली है,
ना गीता ने इसे सराहा है,
सिखों ने चाहे कमर पर कृपाण सजाई है,
फिर भी गुरबाणी ने पहले मेहेर सिखाई है|
ईसाई भी तो उम्मीद की मोमबत्ती जलाता है,
शंकर का भक्त भी उसे भांग चढ़ाता है,
यह तो स्वार्थ है कुछ इंसानो का,
जो भाई को भाई से लड़ाता है|
कोई सत्ता के लिए लड़वा रहा है,
कोई ज़मीन-जायदाद के लिए,
हिंदू-मुस्लिम तो यूँही बदनाम है,
किसी की छोटी सोच के लिए|
कहाँ लिखा है की मुसलमान हिंदू की तारीफ नही कर सकता,
ईसाई गुरुद्वारे का लंगर नही चख सकता,
क्यूँ यह मुद्दा इतना सन्घीन बना रखा है,
की कोई चाहकर भी इस पर खुल कर बात नही कर सकता|
मैं खुद हिंदू हूँ पर मुस्लिम दोस्त भी रखती हूँ
गुरुद्वारे मे मत्था भी हर बार टेकती हूँ,
इशू का जन्मदिन भी खूब मनाती हूँ,
क्योंकि मैं खुद को सिर्फ़ एक इंसान समझती हूँ|
फिर क्यूँ किसी के कहने पर मुझे इनमे से एक को चुनना है,
और अगर चुनना है तो बाकी को ग़लत क्यूँ ठहराना है,
मुझे लगता है मेरा कर्तव्य बस इतना होना चाहिए,
की मेरे होने से मेरे देश का नाम होना चाहिए|
इंसान की नेकी उसका कर्म बताता है,
मज़हब तो उसका उसको और बेहतर बनाता है,
खुद को उँचा उठाओ यह हर ग्रंथ बताता है,
किसी को गिरा कर उठना, यह तो कोई नही बताता है|
अगर आवाज़ उठानी ही है तो अत्याचार के खिलाफ उठाओ,
अगर नारा लगाना ही है तो देश हित मे लगाओ,
यूँ कब तक जाती के नाम पर हिंसा करते रहोगे,
खून तो सबका लाल है, किसी का सफेद है तो बताओ|
मानो या ना मानो,
जो आया है वो जाएगा,
अमर उसका सिर्फ़ कर्म हो पाएगा,
तो कुछ ऐसा करो की दूसरे भी तुम्हे सोच कर मुस्कुरा जाए,
तुम्हारे ना होने पर भी तुम्हारा नाम लोगो के दिलो मे रह जाए|
महज़ किसी के कहने पर क्यूँ आपस मे दंगे करते हो,
सही-ग़लत की थोड़ी समझ तो तुम खुद भी रखते हो|
सोच कर देखो जो लहू बहाने कह दे वह सही कैसे होगा,
इतना तो तय है, वह ना तो राम का ना रहीम का पैगंबर होगा|
-रिया शर्मा