ख़ामोशी

Shushant

शोर तो बहुत था उसकी चीख़ में, पर आवाज किसी को आई नहीं,

आज मौन हो गया वो, फिर भी यह बात समझ किसी को आई नहीं,

साथ होने का दावा आज हर कोई कर रहा,

जरुरत में नज़र एक शक्शियत भी आई नहीं।

 

उसकी आँखों में जो दर्द था वह बॉंटने कोई आया नहीं ,

” मिलकर सब सम्भाल लेंगे” यह वाक्य किसी ने दोहराया नहीं,

सही किया उसने या गलत, अब इस चर्चा का कोई महत्व नहीं,

कड़वा सच तो यह है कि आज उसका वास्तविक कोई अस्तित्व नही।

 

क्या मंज़र रहा होगा जो उसे मौत को गले लगाना आसान लगा,

वरना चीख़ तो एक ख़रोंच से भी निकल आती है,

काश किसी ने प्यार से ही टटोल लिए होता

मन ही तो था साहिब, वहाँ गम कि पूड़ियाँ भी पिघल जाती है।

 

किसी का कुछ नहीं गया बस उसी का परिवार बिखर गया,

एक बाप का बेटा छूट गया,

बहिनो का राखी का धागा टूट गया,

धरी रह गई सारी शान-०- शौकत जब मन को सुकून ही ना मिला,

धरती का चमकता सितारा था, जल्दी आसमानी तारों से जा मिला।

 

कुछ ऐसा हमारे किसी अपने के साथ ना हो इसीलिए वक़्त रहते मिल लो,

दो लफ्ज़ प्यार से बोल लो, एक चाय कि चुस्की साथ भर लो,

काम को कुछ देर दरकिनार कर दो,

एक दूसरे से मन कि बातें कर लो,

कुछ तुम कह लो, कुछ उसकी सुन लो,

थोड़ी ख़ुशी उसे दे दो, थोड़ा गम उसका ले लो,

अपनी ज़िन्दगी के ” शुशांत” को, यूँ मायूसियत में ना मरने दो।

 

                                                       -रिया शर्मा

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