मुझे प्यार खुद से हैं

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कितना कुछ लिखा हैं इन किताबों में,

फिर भी क्यूँ किसी को दिखाई देता नहीं

कितना कुछ छिपा हैं मेरी इन अनगिनत बातों में

फिर भी क्यूँ कोई इनके पीछे झाँकता नहीं|

 

जो नज़रों के सामने है बस वही सच हैं

इनके पीछे का किस्सा क्यूँ कोई जानना चाहता नहीं

इंसान की खूबसूरती आज बस जिस्मानी रह गई हैं

मन के भाव का क्यूँ कोई मोल जानता नहीं|

 

ना खुल के हँस पाता कोई, ना खुल के रो सकता हैं

आज का यह इंसान बस दुनियाँ को दिखाने के लिए जीता हैं

ऐसा वो शायद चाहता नहीं, पर ना जाने क्यूँ मज़बूर हैं वो

इतना भटक गया हैं की सच से बहुत दूर है वो|

 

अँधेरे में रोता हैं

छुपकर वो हँसता हैं

और बाहर जो दिखता हैं,

वो सच नहीं बस एक मुखौटा हैं|

 

दूसरों को खुश करते करते वो खुद से मोहोब्बत करना भूल गया

करता भी क्या बेचारा, यह समाज उसके अंदर के इंसान को जो भूल गया

क्यूँकी,

जब भी उसे किसी ने आँका

मन से नहीं, रूप से नापा|

 

नज़रों पर सबकी एक धूल सी छाई हैं

हर किसी में कोई ना कोई कमी ही नज़र आई हैं

पर कुछ सोच-विचार करने के बाद एक बात ज़हन में आ गई

कोई एक कमी दूर करने गई तो किसी को दूसरी नज़र आ गई|

 

अब प्यार करूँगी तो खुद से, नाकी किसी को रिझाने के लिए

मैनें जनम अपने लिए लिया हैं, नाकी किसी को दिखाने के लिए

क्या हुआ अगर तुम्हारे लिए मैं खूबसूरत नहीं

खुशी इस बात की हैं की आज मेरे चेहरे पर कोई मुखौटा नहीं|

रिया शर्मा