आज मुझे कहने दे

poemआज मुझे कहने दे

 

डोली दरवाजे पर सजी है

दुल्हन बनी बेटी सामने खड़ी है

यह मंज़र देख मेरी आँखें छलक पड़ी है

समझ नहीं आता यह जुदाई की या मिलन की घड़ी है|

 

सुन मेरी बेटी यह कहता हूँ तुझसे

प्यार अपार करता हूँ तुझसे

माना दिखाने मे थोड़ा कमज़ोर हूँ

पर सपने मे भी दूर हो सकता नहीं तुझसे|

 

पच्चीस साल से यह कभी कह ना सका

आज सोचता हूँ कह दूँ

बेटी मेरे जिगर का टुकड़ा हैं तू

कैसे तुझे मैं आज विदा कर दूँ|

 

झोली में झुलाया हैं कैसे तुझे डोली में बैठा दूँ

पलको पर रखा है कैसे किसी को सौप दूँ

कंधो पर खिलाया हैं अब कैसे कन्यादान दूँ

पिता हूँ मैं तेरा कैसे यह बलिदान दूँ|

 

माँ तेरी कहती थी बेटी का घर बसाना है

कैसे उसे बताऊँ यह मेरा सपना बरसो पुराना है

खुशियाँ तेरे कदम चूमे आसमान अपना शीश झुकाए

बस ख्वाइश है मेरी एक ऐसा आशियाना तुझे मिल जाए|

 

दौलत धन कितना होगा उस घर मे यह पता नहीं मुझे

मन का साफ़ एक फरिश्ता पर रहता होगा उस आँगन मे

एक ऐसा ही घर ढूँढा है मैनें तेरे लिए

क्या करू बेटी नहीं, साँसे है तू मेरे लिए|

 

मुस्कुरादे एक बार मेरी बच्ची हस कर विदा कर दूँगा

हीरे मोती से पता नहीं, खुशियों से झोली भर दूँगा

चाहत इतनी सी मैं दिल मैं रखता हूँ

बेटी एक बार सीने से लगा कर तुझे रोना चाहता हूँ|

 

मैं पिता हूँ इसीलिए अपना दर्द दिखा नहीं सकता

पर मेरी बच्ची आज मैं इसे छिपा भी नहीं सकता

जितनी बार तुझे डांटा है उतना गुना तुझसे प्यार करता हूँ

हर बार कहता नहीं, पर तेरा पिता होने पर मैं नाज़ करता हूँ|

 

रिया शर्मा

 

 

 

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