सच की आँधी

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सच की आँधी

 

सत्ता की तख्त पर बैठ बहुत लोगो ने अपना नारा तो सुना दिया

पर मेरे इन  सवालों का जवाब किसी ने नहीं दिया

 

शिक्षा का अधिकार तो सबने दे दिया

पर उसमे भी अमीर ग़रीब का फरक छोड़ दिया

 

क्यूँ हम ग़रीबो को सरकारी और अमीरो को निजी विद्यालय मिले?

जब भी मैने किसी निजी विद्यालय मे पढ़ना चाहा तो उसके द्वार हमेशा बंद मिले?

 

क्यूँ गाँव की क़लम से लिखे शब्द महेज गाँव तक ही रहते है?

क्या शेहेरि क़लम से लिखे शब्द सुनहरे होते है?

 

क्यूँ शिक्षा के चयन मे मेरी आर्थिक स्थिति महत्वपूर्ण है?

क्यूँ उसे नहीं चुना जाता जो उस कार्य के अनुसार परिपूर्ण है?

 

जब जब सरकारें बदली है तब तब वादों की धारा बही है

और हर बार की तरह अंत मे मेरे जैसो की आशाओं की अर्थी उठी है

 

हर कोई यह कह जाता है की हमने यह किया वो किया

अगर सच सुन सकते हो तो सुनो तुमने सिर्फ़ हमारे साथ धोखा किया

 

यहाँ सब दौलत की दौड़ मे लगे है

मगर भूल गये आज भी बहुत से लोग सड़क किनारे भूखे पड़े है

 

किस काम की वो शिक्षा जो हमे ख़ुदग़र्ज़ बना दे

महत्व तो उस शिक्षा का है जो हमे किसी और का शिक्षक बना दे

 

शिक्षा के नाम पर इमाराते खड़ी करना कोई महान काम नहीं

कोई अगर इस अमीर ग़रीब के अंतर को हटा दे तो उससे बढ़कर किसी का नाम नहीं

 

गुज़ारिश है मेरी आप सब से

इस कविता को पढ़ने वाले हर सक्श से

पहुँचा दो यह पैगाम उन नेताओ के महलों तक

जिन्हे यह भी नहीं पता की देश का भविष्य अभी भी रहा है भटक…..

 

रिया शर्मा

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